कच्चा हो या पका, हर तरह से लाभ देता है ये फल
डॉक्टर हरिकृष्ण बाखरू
पपीता गर्म देशों में पाया जाने वाला एक अति महत्वपूर्ण फल है। ये उन फलों में शामिल है जिनके औषधीय गुणों को सदियों से सराहा गया है। आज भी कई सारी बीमारियों में इस फल का इस्तेमाल किया जाता है।
जन्म
अनुमान लगाया जाता है कि पपीते का उद्गम स्थल दक्षिणी मैक्सिको और कोस्टारिका में है। सोलहवीं सदी में स्पेन के लोग इसे मनीला ले गए जहां से शीघ्र ही यह मलक्का पहुंच गया। वहां से इसे भारत लाया गया और बहुत ही कम समय में सभी गर्म देशों में इसने अपनी जगह बना ली। वर्तमान में भारत, मैक्सिको, ब्राजील, पेरू, वेनेजुएला, फिलिपींस और आस्ट्रेलिया में इसकी बड़े पैमाने पर खेती की जाती है।
पोषक तत्व
पपीता एक पोषक फल है। प्रोटीन, खनिज पदार्थ और विटामिनों के दैनिक आवश्यकता की पूर्ति रोजाना इस फल को खाने से हो सकती है। पपीते के ताजे फल में आर्द्रता लगभग 90.8, प्रोटीन 0.6 भाग, खनिज पदार्थ 0.5, रेशा 0.8, कार्बोहाइड्रेट 7.2, कैल्सियम 17, फॉस्फोरस 13 और लौह 0.5 मिलीग्राम होते हैं। पपीते में सबसे अधिक विटामिन ए होता है। प्रति 100 ग्राम पपीते में विटामिन ए की 2020 से लेकर 3000 अंतरराष्ट्रीय यूनिट विटामिन ए होता है। इसके प्रति 100 ग्राम गूदे में थायमिन 0.04, रिबोफ्लोविन 0.25, नायसिन 0.2 और विटामिन सी 57 मिलीग्राम होते हैं। पकने पर विटामिन सी की मात्रा और बढ़ जाती है।
औषधीय गुण
पचने में सहायक: आधुनिक वैज्ञानिक खोजों द्वारा उद्घाटित तथ्य के अनुसार पपीते में उल्लेखनीय औषधीय गुण हैं। इन गुणों में सबसे महत्वपूर्ण दूधिया रस या लेटेक्स में प्रोटीन पचाने वाले एंजाइम की खोज है जो कि पूरे पौधे में वाहिका के जाल द्वारा ले जाया जाता है। एंजाइम, जिसको पेपैन नाम दिया गया है अपनी पाचन क्रिया में पेप्सीन के अनुरूप है और इतना ताकतवर समझा जाता है कि अपने वजन के प्रोटीन का 200 गुना तक पचा सकता है। इसका प्रभाव यह है कि ऊर्जा और शरीर संवर्धन सामग्री प्रदान करने के लिए आहार से अधिकतम पोषक मूल्य प्राप्त करने में शरीर के एंजाइम की मदद करता है।
आंत्र अनियमितताएं
कच्चे पपीते में पेपैन गैस्ट्रिक जूस की कमी, पेट में अस्वास्थ्यवर्धक कफ की अधिकता, अपच, आंत में जलन आदि में अत्यंत लाभकारी है। दवा के रूप में पेपैन अपनी अधिक क्षमता के कारण शीघ्र प्रतिस्थापित होने वाला पेप्सीन है।
गोल कृमि
कच्चे पपीते का गोल कृमि पर घातक असर होता है। कृमि बाहर निकालने के लिए इसको शर्करा के साथ उपयोग में लाया जाता है। पपीते के बीज भी बहुत उपयोगी होते हैं क्योंकि कार्सिन नामक पदार्थ इसमें प्रचूर मात्रा में पाया जाता है जो गोल कृमियों की बहुत प्रभावी दवा है। पत्तियों में पाए जाने वाले अल्कलाइड कारपेन में भी आंत के कृमियों को नष्ट करने, निकालने की ताकत रहती है।
मासिक धर्म की अनियमितताएं
कच्चा पपीता गर्भाशय की मांसपेशियों के तंतुओं के संकुचन में मदद करता है। अत: मासिक स्राव के नियमित होने में लाभकारी है। यह खासकर ठंडी के प्रभाव या नवयौवन, अविवाहित लड़कियों में भय के कारण होने वाले मासिक स्राव के अवसान में सहायक होता है।
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प्लीहा बढ़ना
कच्चा पपीता प्लीहा या स्प्लीन की वृद्धि को कम करता है। फल का छिलका उतारकर, छोटे-छोटे टुकड़े करके सिरके में मिलाकर एक सप्ताह तक रख देना चाहिए। इस तरह परिरक्षित लगभग 20 ग्राम फल को दिन में दो बार भोजन के साथ लेना चाहिए। प्लीहा की अपवृद्धि के उपचार के लिए प्रतिदिन कच्चे पपीते के टुकड़े जीरे व काली मिर्च के साथ भी खाए जा सकते हैं।
गर्भपात
गर्भपात के लिए पपीता बहुत प्रभावकारी दवा है। कच्चा पपीता करी या चटनी के रूप में लेने से गर्भपात की परेशानी में लाभ होता है। यहां तक कि इसमें पका फल भी लाभदायक होता है।
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